Saturday, March 10, 2012

Intzaar...

युहीं लम्हें बीतते रहे,
रातें कटती रहीं
युहीं सासें चलती रहीं ।
इंतज़ार बड़ता रहा,
इंसान तड़पता रहा ...


युहीं  आफ़ताब पिघलता रहा,
चांदनी चमकती रही 
युहीं रागिनी गूंजती रही ।
इंतज़ार चेहेकता  रहा,
इंसान बेहेकता रहा... 


युहीं महफ़िलें सजती रहीं,
समाः बंधता रहा 
युहीं बे-वजह धागे उलझते रहे।
इंतज़ार मचलता रहा ,
इंसान खल्ता रहा...

युहीं आहटें धीमी होती रहीं,
करवटें बदलती रहीं 
युहीं सिलवटें बिगड़ती रहीं ।
इंतज़ार तैरता रहा,
इंसान डूबता रहा...

युहीं घड़ी की सूइयाँ घूमती रहीं,
वक़्त ढलता रहा
युहीं रक्त बहता रहा।
इंतज़ार थमता रहा , गलता रहा, बुझता रहा 
इंसान दीवाना हो गया ...

१०.३.२०१२  

my intzaar sketch done a few years back- http://13freebird.blogspot.in/2011/09/blog-post.html
 

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